स्टॉफ रूम एक बार फिर कुनकुना हो उठा। खुसुर-पुसुर की चटकती लकड़ियों की आँच में, हवा हो गई चौकन्नी और फर्श कुछ सुनने को आतुर। खिड़की-दरवाजों की ...
स्टॉफ रूम एक बार फिर कुनकुना हो उठा। खुसुर-पुसुर की चटकती लकड़ियों की आँच में, हवा हो गई चौकन्नी और फर्श कुछ सुनने को आतुर। खिड़की-दरवाजों की बेचैनी बढ़ गई। दीवालों के हो गए कान खड़े। टी-टेबुल फिर भी बड़ी शांत नजर आ रही थी। निश्चिंत, कि जो बात होगी, सामने आएगी। डेकोरेटिव फ्लावर पॉट, ने भी, जो टेबुल के मध्य रखा रहता है, ऐसा ही सोचा था। तीसरे पीरियड के सायरन के साथ वर्माजी दाखिल हुए। शायद 9वीं बी पढ़ाकर लौटे हैं। 8वीं क्लास से मिश्राजी भी लौट आए। अपने-अपने रजिस्टर, डस्टर टेबुल पर रख कुर्सियों पर कुछ आरामजद होने की कोशिश के बाद, स्टॉफ रूम की खुनक सूँघने लगे। 'अब क्या होगा मिसेज पाटगाँवकर का?' वर्मा ने प्रश्न उछाला। स्टॉफ रूम मिति प्रतिक्रियाओं से भर गया। मिस वृषाली ने मुँह फेरकर भूगोल की किताब में गोल हो जाना उचित समझा। पाटगाँवकर उसकी अच्छी मित्र जो हैं। उसे चर्चा में भाग लेना फालतू लगा। 'देखो, नौकरी-नौकरी के ढंग से की जाए तो शांति रहती है। ज्यादा अपनी वाली लगाने जाओ, तो भुगतो' मिश्रा ने अपनी राय जाहिर की। 'पहली गलती तो औरतें यह करती हैं, कि घर से निकल नौकरी करती हैं....और दूसरी अपने सिद्धांतों के साथ....तो शोकाज नोटिस तो मिलेगा ही। डॉ. सिद्धकी ने अपना दकियानूसी पक्ष रखा। वृषाली के साथ मीनाक्षी को भी लगा, बातचीत आपत्तिजनक रुख ले रही है। पर दोनों चुप लगा गईं। 'अरे क्या शोकॉज, रेजिग्नेशन लिखवा लेगा प्रिंसीपल। विवेक हिर्वे के ताऊजी ट्रस्टी अग्रवाल के पक्के दोस्तों में से हैं और सौरभ रामचंदानी तो खुद ही ट्रस्टी का बेटा है। अनवर को तगड़ा पोलिटिकल सपोर्ट है। यही तीनों लड़के थे ना? उन्होंने अपने-अपने घर जाकर कैसा फीड-बैक दिया होगा? क्या यह हमें समझ नहीं आता?' एस.सी. मेहता ने केस की अपने ढंग से व्याख्या की। 'नौकरी गई समझो पाटगाँवकर की।' मिश्रा ने समर्थन के स्वर में कहा। 'अरे भई, किसी के हाथ में क्या होता है? जिसका जहाँ जितने दिन दाना-पानी लिखा है, वह उसे मिलके रहेगा।' मिसेज डबराल ने बातचीत को भाग्यवादी बनाते हुए कहा। भाग्यवाद के सर्वव्यापी दर्शन पर किसी को ऐतराज न था। हाँ भई वह तो है, का भाव तैरने लगा सबके चेहरों पर। किस्मत के आगे सब घुटने टेकने लगे। बातचीत और आगे निकल जीवन और पुनर्जन्म, आत्मा और परमात्मा तक जा पहुँची। मनुष्य तो कठपुतली मात्र है। डोर तो उसके हाथ है। वो जो चाहता है, वही होता है। होनी तो होकर रहे, अनहोनी ना होए। शहर के एक सुविधा संपन्न अत्याधुनिक पब्लिक स्कूल का स्टॉफ रूम यूँ एक बार फिर सामान्य हो उठा। सुदर्शन वाधवा का चयन मेयो कॉलेज अजमेर के लिए हो गया। क्लास का एक अच्छा लड़का चला जाएगा। इसका सभी को अफसोस हो रहा था। विवेक सहित क्लास के चुनिंदा पॉकेट-मनी पाने वाले लड़कों ने उसकी बिदाई का अपना तरीका निकाला। 20 रु. प्रति छात्र एकत्रित करने का जब 5वीं-बी की क्लास टीचर सेक्शन में पहुँची, तो नजारा यही था, पैसे इकट्ठा करने का। 'व्हाट इज दिस गोइंग आन माई डियर चिल्ड्रन' मेडम पाटगाँवकर ने पूछा। मेडम को बताना है या नहीं बताना है, इस बारे में तो कुछ सोचा ही नहीं था। पूरी क्लास, तिकड़ी की तरफ देखने लगी। अनुत्तर का शून्य टँग गया। क्लास टीचर का धैर्य चुका नहीं था, पुनः प्यार से बोली 'टेल मी....आई एम यूअर क्लास टीचर। डोंट हेजिटेट। रोहित टेल मी....व्हाट आर यू डूइंग? 'मेम, सुदर्शन इज गोइंग टू मेयो कॉलेज। देट्स व्हाय हिअर वी.आर. कन्ट्रीब्यूटिंग मनी.....टू गिव.... गिफ्ट फार हिम।' मासूमियत और झिझक, प्यार के हल्के से स्पर्श से पिघल गई। 'ओफ्फो, तो यह बात है। लिसन मी चिल्ड्रन, कह मिसेज पाटगाँवकर जो अपनी रो में बही, तो बहती ही चली गई........उन्हें लगा यही तो वक्त है....जब बच्चों को पैसों को कमाने में लगने वाली मेहनत और उसके अपव्यय से बचने का पाठ पढ़ाना होगा....इंटरेक्टिव इंग्लिश का अगला लेसन फिर से ले लिया जाएगा। पढ़ने की उम्र में पेरेन्ट्स के पैसों से गिफ्ट देने के बजाए, बच्चों द्वारा क्रिएटिव उपहार की महत्ता को समझाना ज्यादा जरूरी है। उन्होंने तुरंत पैसों को बच्चों में वापस बँटवा दिया और कहा- 'जब तुम कमाओ, तब देना कन्ट्रीब्यूटरी गिफ्ट। अभी तो तुम लोग सुदर्शन के लिए अपने हाथों की कलाकारी का कार्ड बनाकर दो या घर के कबाड़ में पड़ी चीजों के क्रॉफ्ट से कोई सुंदर नमूना घड़के दो। तुम्हारी मेहनत और सूझबूझ की गिफ्ट उसे याद भी रहेगी और तुम्हारे पेरेन्ट्स पर अनावश्यक भार भी नहीं आएगा।' घूमते चाक पर कच्ची मिट्टी का लौंदा बेशेप होते-होते सुघड़ गया। बात इतनी पते की थी और समय पर की गई थी, कि कुछ एक अमीरजादों में कुलबुलाहट पैदा कर, सामान्य विद्यार्थियों के दिमागों में धँस गई। विवेक हिर्वे को सबसे ज्यादा तकलीफ हुई। कन्ट्रीब्यूशन का सुझाव उसका जो था। फिर आया अंशुमान गाँधी का जन्मदिन। नए-नए तरीकों से बर्थ-डे मनाने की होड़ में एक कड़ी और जुड़ी। पहले सिनेमा हॉल में फिल्म-शो का आयोजन और फिर शहर के महँगे से महँगे होटल मालवारी ढाणी में भोजन रखा था, सर मनसुखलाल गाँधी ने। नामी इंडस्ट्रलिस्ट। क्लास टीचर को भी बुलाया था। मिसेज पाँटगाँवकर किन्हीं कारणवश जा नहीं पाईं, तो अगले दिन क्लास में पूछा- 'हाँ तो बच्चों, कल तो बहुत इंजाय किया होगा.... क्यों है ना? कौन-कौन गया था पार्टी में?' पूरी क्लास चुप, 'अरे भई कोई कुछ हमें बता ही नहीं रहा। कौन से गेम खेले? पिक्चर कैसी लगी? मीनू क्या था? क्यों बेला, तुम गई थी ना? बताओ फिर?' 'वो मेडम, कल बहुत झगड़ा हुआ।' 'झगड़ा? वो भी बर्थडे पार्टी में? क्यों-क्यों?' 'मेम वो दिलीप और रोहित झपट पड़े एक-दूसरे पर।' 'रोहित झपट पड़ा? रोहित पौराणिक! क्लास का सबसे नेकदिल, सीधा, ईमानदार लड़का?' मिसेज पाटगाँवकर को विश्वास ही नहीं हुआ। 'रोहित तुम्हीं बताओ, क्या हुआ था? उन्होंने उसी से सीधे पूछा। 'मेम, बात कोई खास नहीं थी। सौरभ, अनवर, विवेक और उनके पिछलग्गू साथी सभी को बहुत ज्यादा चिढ़ा रहे थे। टॉकीज में भी हम लोगों की कुर्सियों पर पीछे से पाँव रखना, सभी की ड्रेस पर कमेंट करना, नकल उतारना, यही सब चल रहा था। 'तो फिर तुम क्यों झगड़ पड़े?' 'वही बता रहा हूँ। रोहित कहता गया, मेम मुझे यूनिफार्म का ब्लेजर बहुत पसंद है। मैं शाम को पार्टी में यही पहनकर गया था....और फिर मेरे पास कोई फुल-आस्तीन स्वेटर है भी नहीं, इसलिए भी.... बस मेरा ब्लेजर पहनकर आना इन लोगों के लिए अच्छा बहाना हो गया...रोहित पहने खाली ब्लेजर.....'कह इन्होंने मुझे बहुत चिढ़ाया।' 'फिर...?' फिर मेम, देखो-देखो फटीचर की गिफ्ट देखो। क्या लाया है फटीचर, कहकर सौरभ और अनवर ने दिलीप को उकसाया कि मेरी लाई गिफ्ट फाड़कर देखी जाए। दिलीप ने रेपर फाड़ने के लिए मेरी गिफ्ट को हाथ लगाया ही था, कि मेम, मुझे भी गुस्सा आ गया। यह बद्तमीजी नहीं चलेगी, कह मैंने उसे परे हटाना चाहा। पर वह शैतान की तरह गिफ्ट फाड़ने की बार-बार हरकत करने को उतावला हो उठा..... फिर हम दोनों के बीच हाथापाई होने लगी। तब अंशुमान की मम्मी व अन्य लोगों ने हमें छुड़ाया....बस यही बात हुई। 'मिसेज पाटगाँवकर को पूरा विश्वास हो गया, कि ऐसा ही हुआ होगा। फिर भी उन्होंने एक बार पूरी क्लास से पूछा...क्या यही बात थी?' 'यस मेडम' की समवेत ध्वनि गूँज उठी। इस बार फिर मिसेज पाटगाँवकर से रहा नहीं गया। ग्रामर की क्लास तो फिर हो जाएगी। विद्यार्थी जीवन में पोशाक को लेकर यूँ छींटाकशी करना उन्हें परेशान व दुखी कर गया। 'दिलीप, सौरभ, अनवर, स्टैंड आन दी बैंच।' कड़क ऑर्डर रिंग मास्टर के चाबुक सा उनकी जिबान से छिटका। 'चलो तीनों अब अपने व्यवहार के लिए रोहित से माँफी माँगो......से सॉरी, सुना नहीं? मैंने कहा, से सॉरी।' 'सॉरी रोहित' की तीन आवाजें मिमियाईं।' सटाक, सटाक, सटाक, रूलर ने अपना काम किया। फिर वे पूरी क्लास से बोलीं- 'सौरभ, अनवर और विवेक से कोई दो सप्ताह तक बात नहीं करेगा।' पूरी क्लास रोहित के साथ थी। उसकी हमदर्द और मेडम के प्रति गदगद। क्लास टीचर ने अपना कर्तव्य निभाया। पर अब तक एक दूसरा शिकायती मोर्चा भी तैयार हो चुका था, मिसेज पाटगाँवकर के विरुद्ध। बच्चे जब अपनी मर्जी, खुशी व पेरेन्ट्स की परमीशन से कन्ट्रीब्यूट कर रहे हों, तो दो कोड़ी की मास्टरनी होती कौन है उन्हें रोकने वाली? विवेक हिर्वे के ताऊजी भिन्नाए। भिन्नाए ट्रस्टी अग्रवाल के कानों के समीप। सौरभ रामचंदानी के पिता तो आग-बबूला हो उठे, मेरी बिल्ली मुझी से म्याऊँ। मेरे ही बेटे से कहती है, क्लास में, से सॉरी? चार पैसे के लिए एड़ियाँ घिसने वाली मास्टरनी, मेरे ही बेटे को रूलर से मारती है? सोशल बायकाट करवाती है? मैं उसी की छुट्टी न करवा दूँगा?' अनवर के अब्बू का भी खून खोल उठा। 'उसकी यह हिम्मत, कि मेरे बेटे को सजा दे? अब कानूनन रोक का अड़ंगा लगवाता हूँ पब्लिक स्कूल पर ही। यहाँ-वहाँ रोती फिरेगी, दो टके की मास्टरनी। प्रिंसीपल का नोटिस तो आना ही था, आ गया।' मिसेज पाटगाँवकर ने अपना इस्तीफा खुद ही लिखकर पर्स में रख लिया और भारी मन से प्रिंसीपल चेम्बर की तरफ चल दी। सोच रही थी, जैसे ही सर कहेंगे, ऊपर से प्रेशर है, आपको हमें टरमीनेट करना होगा, वैसे ही मैं रेजिग्नेशन दे दूँगी। नौकरी की जरूरत के चलते घिघियाऊँगी नहीं। माफी भी नहीं माँगूगी। मैंने भला क्या गलती की है? क्या क्लास टीचर होने का मतलब सिर्फ हाजिरी लेना होता है? या सिर्फ कोर्स पढ़ाना? क्या अपनत्व के धागों को बेरहमी से काटना होता है? क्या आदर्शों का कोई स्थान ही नहीं रह गया है जिंदगी में? क्या नैतिक मूल्य चुक गए हैं पूरी तरह से? 'मे आई कम इन सर?' 'यस कम इन हेव ए सीट' 'थैंक्यू सर। 'मिसेज पाटगाँवकर बैठ गईं। धड़कते दिल की घड़ी में बारह बज रहे थे। संयत रहने की कोशिश में, पसीने छूट रहे थे। जैसे-तैसे अपने को सँभालकर, वे प्रिंसीपल डे सरकार सर के सामने बैठी रही। 'मिसेज पाटगाँवकर, मैं आपके कार्य से बहुत खुश हूँ। यू आर रिअली रिअल क्लास टीचर। मुझे दोनों वाकिए पता चल चुके हैं। आई एम प्राउड आफ यू। मैं अपनी रिस्क पर, आपके विरुद्ध सभी शिकायतें निरस्त करता हूँ। गो अहेड। मिसेज पाटगाँवकर की आँखें नम हो उठीं 'थैंक्यू सर,कह वे बाहर आ गईं।
HI
ReplyDeleteतपाईको ब्लग एकदम नै राम्रो छ मलाई धेरै मन पर्यो यसरी नै अझै प्रगति गर्दै जानु है
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sangita kc