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जिंदगी का सफर...

इंसान अपनी जिंदगी में न जाने कितने सफर करता है। कोई कहीं घूमने जाता है तो कोई शादियों में और कोई किसी काम से न जाने कहां-कहां जाने के लिये अ...

इंसान अपनी जिंदगी में न जाने कितने सफर करता है। कोई कहीं घूमने जाता है तो कोई शादियों में और कोई किसी काम से न जाने कहां-कहां जाने के लिये अक्सर सफर करता ही रहता है। उनमें से कई सफर ऐसे होते हैं जिन्हें इंसान हमेशा याद रखता है, पर इनमें से कुछ सफर ऐसे भी होते हैं जिसे काटना इंसान के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही एक सफर है, जिंदगी का सफर, पर इसे एक विडंबना ही कहेंगे कि आज के दौर का ऐसा कोई भी इंसान नहीं है जो अपनी जिंदगी जैसे मुश्किल सफर को भूलकर उन चंद सफरों को याद रखता है जिसे साथ लेकर चलने से न तो उसका कोई भला है और न ही आगे आनेवाली पीढी का। आज मैं अपने जीवन के ऐसे ही मुश्किल सफर की कहानी बताने जा रहा हूं जो शायद आप लोगों को भी अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने पर मजबूर कर दे। एक छोटे से शहर से इंटर पढाई पूरी करने के बाद अपने दिल में डाक्टर बनने के सपने को लेकर मैं लखनऊ पहुंच गया। यहां मैंने एक नामी कोचिंग संस्थान में अपना दाखिला करवाया। डाक्टर बनने का ये सपना सिर्फ मेरा ही नहीं बल्कि मेरे पिता जी का भी था। इसके साथ ही मैंने अपने शहर के डिग्री कालेज में भी अपना दाखिला करवा रखा था ताकि अगर डाक्टर न बन सका तो कम से कम साइंस साइड ग्रेजुएट होकर अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ सकूं। लेकिन इस दो नाव की सवारी में, मैं अपने सपनों के साथ कमजोर होता गया और दो साल तैयारी करने के बाद भी मैं किसी भी मेडिकल कालेज में दाखिल नहीं हो सका। मुझे इस बात का आज भी अफसोस है कि मैं अपने पिता जी के सपने को पूरा नहीं कर सका। इसके बाद मैंने वापस आने का फैसला किया और अपनी बीएससी की पढाई पूरी की। इन्हीं सब के बीच मेरे दिमाग में पत्रकारिता का कीडा जगा जो मुझे हमेशा परेशान किया करता था। इस क्षेत्र की सच्चाई से दूर मैंने पत्रकारिता के कोर्स को करने का फैसला भी कर लिया। कहीं न कहीं मेरे दिल में हमेशा से ही अरमान थे कि मैं अपनी पहचान खुद बनाऊंगा, जो लोग आज मुझे मेरे पिता जी की वजह से पहचानते हैं अगर वही लोग मेरे पिता जी को मेरे नाम से पहचानेंगे तो शायद वो दिन मेरे लिये कुछ खास ही होगा। पत्रकारिता करने का एक और कारण मेरी समाज सेवा की आदत थी। अपनी हैसियत के हिसाब से मैंने हमेशा जरूरतमंदों की मदद भी की और जहां तक मेरा मानना है कि अगर पत्रकारिता ईमानदारी से की जाए तो शायद ही इससे बेहतर समाजसेवा का कोई और विकल्प हो। सपनों की इन ऊंची उडान के साथ ही अगस्त 2007 में मैंने पत्रकारिता के एक प्रतिष्ठित संस्थान के ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म कोर्स में दाखिला लिया। ये सिर्फ एक साल का कोर्स था और इसके लिए मैंने एक मोटी रकम भी अदा की। यहीं से अनजाने में मैंने मुश्किल सफर की शुरूआत की। कोर्स करते समय ही मैंने इस क्षेत्र के ग्लैमर में उडना शुरू कर दिया और ये सिर्फ मेरे अकेले की नहीं बल्कि मेरे साथियों की भी समस्या थी। हम जमीन से काफी ऊंचे उड चुके थे और उस समय किसी छोटे चैनल में काम करने के नाम से ही भडक उठते थे। अखबार में तो काम करना ही नहीं था ऐसा हम सभी सोचते थे, पर जब कोर्स पूरा हुआ तभी से खराब वक्त का अहसास होने लगा। संस्थान ने इंटर्नशिप का वादा तो किया पर मामला सिर्फ प्रयास तक ही सीमित रह गया और समय निकलता गया। इसी बीच हम तीन दोस्तों ने दिल्ली चलने का फैसला किया और हम दिल्ली आ गए। यहां आकर आसान दिखने वाला यही क्षेत्र हमें काफी मुश्किल लगने लगा। हर दिन किसी न किसी चैनल में जाकर लोगों से मिलना और इंटर्नशिप की बात करना, ये मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया। इस सब के लिये भी किसी न किसी परिचित का होना बेहद जरूरी था वरना हमें बाहर खडे गार्ड ही यह कहकर बाहर का रास्ता दिखा देते थे कि यहां अभी कुछ नहीं हो रहा है और सीवी को कूडेदान में फेंक दिया जाता था। कुछ समय बाद मेरे परिचितों की सूची भी खत्म हो गई और मैं सिर्फ फोन पर ही बात करने के लिये मजबूर हो गया। कुछ दिनों बाद मैं चैनल की दुनिया से दूर होकर जमीन पर आ गया। इसके बाद मैं अखबार और पत्रिकाओं में इंटर्नशिप के लिए गया पर यहां भी परिचित का होना बेहद जरूरी था और वही मेरे पास नहीं था। हर दिन मुझे गेट से बाहर भेज दिया जाता था। इसके बाद सुबह उठना, सभी को फोन करना, सिर्फ यही एक काम था जो मेरे पास बचा था। सुबह-शाम खाना खाते वक्त मुझे ऐसा अहसास होता था कि इस निवाले पर मेरा अधिकार नहीं है। क्या यही करने मैं दिल्ली आया हूं? यही सवाल मुझे बार-बार परेशान करता था। इंटर्नशिप दिलाने के वादे तो सभी ने किये पर वादा पूरा करने वाला कोई न था। दिल्ली में कम से कम खर्चा भी किया जाए तब भी महीने के छ: से सात हजार रुपये आराम से खर्च हो ही जाते थे, इसी खर्चे को कम करने के लिये मैंने अपने सुबह-शाम के खाने और अन्य खर्र्चो में भी काफी कटौती की। लेकिन कटौती के बाद भी छ: हजार रुपये खर्च हो ही जाते थे। घर से पैसा लेना मुझे बोझ लगने लगा था, पर ये मेरी मजबूरी थी। लेकिन शायद मेरे पिता जी को इस बात का अंदाजा था। इसीलिये मेरे एटीएम में हमेशा मेरी जरूरत से ज्यादा रुपये रहते थे। इस मामले में, मैं हमेशा ईश्वर का शुक्रगुजार रहूंगा कि उन्होंने मुझे देवता समान पिता दिया। मेरे इन सपनों के पूरा होने पर इसका सारा श्रेय उन्हें ही जाएगा क्योंकि पैसे के बिना आप सफर में सफर ही करेंगे। धीरे-धीरे तीन महीने बीत गये पर कहीं कोई काम नहीं बना, कुछ ने तो फोन उठाना ही बंद कर दिया। मुश्किलें लगातार बढती जा रही थीं। रात में नींद भी आनी बंद हो गई। कहीं न कहीं मेरे मन में कुछ न कर पाने का डर सताने लगा। कुछ न बनता देख मैं ईश्वर की शरण में पहुंच गया और नियमित रूप से पूजा-पाठ करने लगा। प्रयास जारी रखा और ये कसम खाई कि अब अगर कुछ करूंगा तो इसी क्षेत्र में करूंगा। इस क्षेत्र में ही काम करने का मुझ पर जुनून सा सवार हो गया। पर एक बडी समस्या अभी भी मुंह फाडे खडी थी कि आखिर काम कब मिलेगा। सभी को अनुभवी लोगों की जरूरत थी, पर इस विचार धारा के इन लोगों को ये कौन समझाता कि हर इंसान कभी न कभी तो अनुभवहीन ही होता है और ये सब भी तो इस क्षेत्र में कभी तो नये रहे होंगे। खैर ऐसे लोगों की मानसिकता बदलने का बीडा मैंने नहीं उठाया था। मुझे तो इस क्षेत्र से जुडे किसी भी संस्थान में ऐसी जगह चाहिये थी जहां पर काम करके अनुभव प्राप्त कर सकूं। मेरा प्रयास जारी था और वो एक दिन रंग भी लाया। आखिरकार इसी क्षेत्र से जुडे एक प्रतिष्ठित संस्थान के एक सज्जन से मेरी मुलाकात हुई और ये मुलाकात सार्थक भी रही, उन्होंने मुझे अपने यहां इंटर्नशिप दे दी। आश्चर्य की बात ये है कि ये न तो मेरे परिचित थे और न ही रिश्तेदार, पर शायद उन्होंने मेरी परेशानी को समझा और मुझे अपनी क्षमता दिखाने का मौका दिया। जिनके साथ मैं काम सीख रहा हूं, वो भी बहुत अच्छे इंसान हैं और उनसे मैं काफी कुछ सीख भी रहा हूं। इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा। मुझे ये भी पता है कि ये सफर आगे और भी मुश्किल होगा। इसे बाद इसी क्षेत्र में नौकरी की समस्या अपनी दोनों बांहें फैलाये मेरा इंतजार कर रही होगी, पर उस समय के लिये मैं अभी से तैयार हूं। मेरे अभी तक के जीवन की ये कहानी सिर्फ कहानी ही नहीं बल्कि मेरा एक प्रयास है। इसे बताने का मकसद सिर्फ इतना है कि आप भी अपने जीवन के ऐसे सफर के बारे में सोचें। जाहिर है आपने भी अपने जीवन में मुश्किलों का सामना किया होगा और अपनी उन मुश्किलों को सोच कर अगर आप अपने क्षेत्र में आने वाले युवाओं को मौका देंगे तो शायद उनका सफर अगर आसान नहीं तो कम से कम मुश्किल भी नहीं होगा। अगर आप सभी मेरे इस प्रयास के समर्थन में हैं तो आज से ही मेरी उपरोक्त बातों अमल करें। मैं आप सब से ये उम्मीद करता हूं कि आप आने वाले युवाओं के लिये बेहद उपयोगी साबित होंगे। मेरा मुश्किलों से भरा, जिंदगी का सफर और प्रयास आप को कैसा लगा, मुझे जरूर बतांए।

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